परमेश्वर के कार्य 

WORK

परमेश्वर के कार्य 
(The Works of God)

बाइबल परमेश्वर के कार्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, जो उनके चरित्र और हमारे जीवन में उनके महत्व को प्रकट करते हैं। ये कार्य सृष्टि, संरक्षण, उद्धार, न्याय, और प्रकाशन के रूप में देखे जा सकते हैं। प्रत्येक कार्य का अपना विशेष महत्व है और यह हमें परमेश्वर के अद्वितीय स्वभाव को समझने में मदद करता है। 

सृष्टि (Creation)

परमेश्वर का सबसे प्रारंभिक और मुख्य कार्य सृष्टि है। उत्पत्ति 1:1 में लिखा है, “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” इस साधारण वाक्य के पीछे गहरी वास्तविकता यह है कि परमेश्वर ने शून्य से सब कुछ रचा, जिसमें पृथ्वी, आकाश, और समस्त जीवित प्राणी शामिल हैं। सृष्टि की प्रक्रिया में, उन्होंने पहले दिन प्रकाश को रचा, जो अंधकार को दूर करता है। दूसरा दिन आकाश बनाया गया, जो पृथ्वी के वातावरण का निर्माण करता है। तीसरे दिन भूमि और समुद्र को अलग किया गया और भूमि पर पौधों की उत्पत्ति हुई, जो पारिस्थितिकी तंत्र की नींव रखते हैं। चौथे दिन परमेश्वर ने सूरज, चांद, और तारे बनाए, जो समय, ऋतुओं, और प्रकाश का निर्धारण करते हैं। पांचवें दिन समुद्री जीव और पक्षी सृजित किए गए, जो जल और वायु में जीवन का संचार करते हैं। छठे दिन परमेश्वर ने भूमि पर रहने वाले पशु और अंत में मनुष्य को बनाया, जैसा कि उत्पत्ति 1:26-27 में उल्लेख है: “फिर परमेश्वर ने कहा, ‘हम मनुष्य को अपने स्वरूप में, अपनी समानता के अनुसार बनाएं…’ और परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया।”

यह तथ्य कि मनुष्य को परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है, हमारे आत्मिक और नैतिक गुणों को दर्शाता है। यह हमें स्वतंत्रता, विवेक, और आत्मा के साथ प्रदान करता है, जो हमें अन्य सृष्टियों से अलग करता है। मनुष्य की सृष्टि का यह कार्य परमेश्वर की अपार बुद्धिमानी और रचनात्मकता को प्रदर्शित करता है, जो उनकी सर्वोच्चता का प्रतीक है। यिर्मयाह 10:12 कहता है, “उसने अपनी शक्ति से पृथ्वी को बनाया, अपनी बुद्धि से जगत को स्थिर किया, और अपनी समझ से आकाश को फैलाया।”

सृष्टि के कार्य को समझने से हम प्रकृति की सुंदरता और विविधता में परमेश्वर की अद्भुत रचनात्मकता को देख सकते हैं। हर जीवित प्राणी, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, सृष्टि की इस महान योजना का एक हिस्सा है, जिसमें प्रत्येक की अपनी भूमिका है। इस सृष्टि के माध्यम से, परमेश्वर ने हमें उनके अनंत प्रेम, ज्ञान, और शक्ति का अनुभव कराया है।

संरक्षण (Preservation)

सृष्टि के बाद, परमेश्वर का कार्य उसकी रचना की सुरक्षा और संरक्षण में भी होता है। भजन संहिता 121:3-4 में लिखा है, “वह तेरे पाँव को डगमगाने नहीं देगा, तेरा रक्षक झपकी नहीं लेगा। देखो, इस्राएल का रक्षक न तो झपकी लेता है और न सोता है।” यह पद हमें यह सिखाता है कि परमेश्वर निरंतर जागरूक और सतर्क रहते हैं, और उनकी उपस्थिति निरंतर हमें सुरक्षित रखती है। परमेश्वर की संरक्षण प्रक्रिया कई रूपों में प्रकट होती है। एक तरफ, वह भौतिक रूप से हमारे चारों ओर की दुनिया की रक्षा करते हैं, प्राकृतिक प्रक्रियाओं को संतुलित करते हैं, जैसे मौसम, जलवायु, और पर्यावरणीय स्थितियों का समन्वय। भजन संहिता 104:14-15 में उल्लेख है, “वह घास को पशुओं के लिए और खेती के लिए पौधों को उगाता है, ताकि पृथ्वी से अन्न निकले।” यह स्पष्ट करता है कि परमेश्वर की निगरानी और प्रावधान पृथ्वी के संसाधनों के माध्यम से हमें जीवित रखते हैं।

दूसरी तरफ, परमेश्वर का संरक्षण आत्मिक और नैतिक सुरक्षा भी प्रदान करता है। वह हमें पाप और बुराई से बचाते हैं, हमें अपने मार्ग पर चलने की दिशा दिखाते हैं। भजन संहिता 23:4 कहता है, “यद्यपि मैं मृत्यु के अंधकारमय घाटी में से होकर चलूँ, तौभी मैं किसी भी विपत्ति से नहीं डरूंगा, क्योंकि तू मेरे साथ है; तेरी लाठी और तेरी छड़ी मुझे सांत्वना देते हैं।” यह पद हमारे आत्मिक मार्गदर्शन और सुरक्षा का प्रतीक है, जिसमें परमेश्वर हमारे जीवन के कठिन समय में भी हमें संरक्षण प्रदान करते हैं। 

इसके अतिरिक्त, परमेश्वर का संरक्षण उनकी वाचा और प्रतिज्ञाओं में भी प्रकट होता है। जैसे, व्यवस्थाविवरण 31:6 में उन्होंने कहा, “तुम मजबूत और साहसी रहो, उन से मत डरो, क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साथ है; वह तुम्हें नहीं छोड़ेगा और न ही तुम्हें त्यागेगा।” यह वादा हमें यह विश्वास दिलाता है कि परमेश्वर कभी हमें अकेला नहीं छोड़ेंगे और हमेशा हमारे साथ रहेंगे। परमेश्वर के संरक्षण के महत्व को समझना हमें यह सिखाता है कि हमारे जीवन की हर परिस्थिति में हम उन पर भरोसा कर सकते हैं। उनके संरक्षण के माध्यम से, हम सुरक्षा, शांति, और स्थिरता का अनुभव करते हैं, जो हमें उनके प्रति समर्पित और आभारी बनाता है।

उद्धार (Salvation)

परमेश्वर का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य उद्धार है। उनकी अपार प्रेम और अनुग्रह के कारण, उन्होंने मानवजाति के उद्धार की योजना बनाई। यूहन्ना 3:16 में लिखा है, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” इस पद में उद्धार की योजना का सार प्रस्तुत किया गया है, जो परमेश्वर के प्रेम, दया, और बलिदान का प्रतीक है।

उद्धार की योजना को समझने के लिए हमें मानवजाति के पतन की कहानी से शुरू करना होगा। उत्पत्ति 3 में आदम और हव्वा का पाप, जिसके परिणामस्वरूप मानवजाति पाप और मृत्यु के बंधन में आ गई। इस पतन ने परमेश्वर और मनुष्य के बीच का संबंध तोड़ दिया, जिसके कारण पाप का शासन दुनिया में फैल गया। लेकिन परमेश्वर की योजना में पहले से ही उद्धार की व्यवस्था थी, जिसे उन्होंने समय-समय पर प्रकट किया। परमेश्वर ने अपने उद्धार के काम के रूप में यीशु मसीह को भेजा, जिन्होंने अपने जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान के माध्यम से मानवता के लिए उद्धार का मार्ग प्रस्तुत किया। रोमियों 5:8 में कहा गया है, “परमेश्वर ने हमसे अपने प्रेम की इस रीति से प्रकट किया, कि जब हम अभी पापी ही थे, मसीह ने हमारे लिए अपने प्राण दे दिए।” यह पद दर्शाता है कि परमेश्वर का प्रेम निःस्वार्थ और असीम है, और उन्होंने हमारे उद्धार के लिए अपने पुत्र को बलिदान किया।

उद्धार प्राप्त करने के लिए विश्वास और पश्चाताप आवश्यक है। प्रेरितों के काम 2:38 में पतरस ने कहा, “तुम सब पश्चाताप करो और अपने-अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लो, और तुम पवित्र आत्मा का वरदान पाओगे।” यह पद उद्धार की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है: पापों का स्वीकार, विश्वास का अंगीकार, और नई जीवनशैली को अपनाना। उद्धार की योजना न केवल हमें पाप से मुक्त करती है बल्कि हमें परमेश्वर के साथ एक नया और स्थायी संबंध भी प्रदान करती है। यह हमें अनन्त जीवन का आश्वासन देती है और हमें प्रेरित करती है कि हम अपने जीवन को परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ढालें। उद्धार का यह अनमोल उपहार परमेश्वर के अनंत प्रेम और अनुग्रह का प्रतीक है, जो हमारे लिए उनके अद्वितीय स्वभाव को प्रकट करता है।

न्याय (Judgment)

परमेश्वर न्यायी हैं और वह धर्म और सत्य के आधार पर न्याय करते हैं। भजन संहिता 9:8 में लिखा है, “वह धर्म से जगत का न्याय करेगा और जातियों का सीधाई से न्याय करेगा।” यह पद हमें यह सिखाता है कि परमेश्वर का न्याय निष्पक्ष, सत्य और धर्मसंगत होता है। उनके न्याय का उद्देश्य हमारे कार्यों का सही मूल्यांकन करना और हमें उचित परिणाम देना है।

परमेश्वर के न्याय का पहला उदाहरण सोदोम और गमोरा के विनाश में मिलता है। उत्पत्ति 19:24-25 में लिखा है, “तब यहोवा ने सोदोम और गमोरा पर गंधक और आग बरसाई…” यह न्याय इन नगरों की भ्रष्ट और पापमय जीवनशैली के कारण हुआ। परमेश्वर ने उनके पाप के कारण उन्हें नष्ट कर दिया, जो उनके धर्मसंगत न्याय का एक उदाहरण है।

दूसरा उदाहरण जलप्रलय है, जैसा कि उत्पत्ति 6:17 में वर्णित है, “मैं पृथ्वी पर प्रलय अर्थात जल का महाप्रलय लाने को हूँ, जिससे सब प्राणी जिनमें जीवन का श्वास है, पृथ्वी पर नष्ट हो जाएँगे।” यह न्याय मानवता के पाप के कारण आया, लेकिन नूह और उसके परिवार की रक्षा भी की गई, जो परमेश्वर के न्याय और दया दोनों को दर्शाता है। परमेश्वर का न्याय केवल विनाश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सुधार और मार्गदर्शन का भी माध्यम है। इब्रानियों 12:6 कहता है, “क्योंकि जिसे प्रभु प्रेम करता है, उसे ताड़ना भी देता है, और जिसे पुत्र मानता है, उसे वह दंड भी देता है।” यह पद हमें यह समझाता है कि परमेश्वर का न्याय हमें सुधारने और सही मार्ग पर लाने के लिए भी है।

अंतिम न्याय के समय, परमेश्वर सभी को उनके कर्मों के अनुसार न्याय करेंगे। प्रकाशित वाक्य 20:12 कहता है, “और मरे हुए अपने-अपने कामों के अनुसार न्याय किए गए, जो उन पुस्तकों में लिखे थे।” यह अंतिम न्याय हमें यह बताता है कि हमारे सभी कर्मों का लेखा-जोखा है, और परमेश्वर हमें उनके अनुसार न्याय करेंगे। परमेश्वर के न्याय का महत्व हमारे जीवन को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कार्यों का जवाबदेह होना चाहिए और सत्यनिष्ठा और न्याय के साथ जीवन जीना चाहिए। परमेश्वर का न्याय हमें न केवल हमारे कर्मों का परिणाम दिखाता है बल्कि हमें सही मार्ग पर चलने की दिशा भी देता है।

प्रकाशन (Revelation)

परमेश्वर ने अपने वचन और कार्यों के माध्यम से अपने आप को प्रकट किया है। इब्रानियों 1:1-2 में लिखा है, “पुराने समय में परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से कई बार और कई प्रकार से बात की, परन्तु इन अंतिम दिनों में उसने हमसे अपने पुत्र के माध्यम से बात की।” यह पद परमेश्वर के प्रकाशन की प्रक्रिया को दर्शाता है, जिसमें उन्होंने हमें अपने वचन और कार्यों के माध्यम से अपने बारे में ज्ञान दिया।

पुराने नियम में, परमेश्वर ने विभिन्न तरीकों से अपने आप को प्रकट किया। भविष्यद्वक्ता, जैसे मूसा, यशायाह, और यिर्मयाह, परमेश्वर के वचनों को लोगों तक पहुँचाते थे। निर्गमन 3:4 में परमेश्वर ने मूसा को जलती झाड़ी के माध्यम से बुलाया और उनके साथ वाचा की स्थापना की। इस प्रकार, परमेश्वर ने विभिन्न समय और स्थितियों में अपने उद्देश्य और मार्गदर्शन को प्रकट किया।

नए नियम में, परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु मसीह के माध्यम से अपने आप को प्रकट किया। यूहन्ना 1:14 कहता है, “और वचन देहधारी हुआ और हमारे बीच में निवास किया, और हम ने उसकी महिमा देखी, पिता के एकलौते पुत्र की महिमा, जो अनुग्रह और सत्य से पूर्ण था।” यीशु मसीह के जीवन, शिक्षाओं, और कार्यों के माध्यम से, परमेश्वर ने अपने प्रेम, दया, और सत्य को प्रकट किया।

प्रकाशन का अंतिम स्वरूप बाइबल के वचनों में मिलता है। 2 तीमुथियुस 3:16 में लिखा है, “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से है और शिक्षा, सुधार, और धार्मिकता में प्रशिक्षण के लिए लाभकारी है।” यह पद हमें बताता है कि बाइबल परमेश्वर का प्रेरित वचन है, जिसमें हमें उनके बारे में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है। परमेश्वर के प्रकाशन के माध्यम से हमें उनके चरित्र, योजना, और उद्देश्य का ज्ञान मिलता है। यह ज्ञान हमें उनके मार्गदर्शन के अनुसार जीवन जीने की दिशा देता है। परमेश्वर का प्रकाशन हमें सच्चाई और मार्गदर्शन प्रदान करता है, जो हमारे आत्मिक विकास और स्थिरता के लिए आवश्यक है। यह हमें उनके साथ एक गहरा और सार्थक संबंध स्थापित करने में मदद करता है। 

प्रमुख विचार:

परमेश्वर के कार्यों का विश्लेषण उनके सृष्टि, संरक्षण, उद्धार, न्याय, और प्रकाशन के रूप में किया जा सकता है। इन कार्यों के माध्यम से हम परमेश्वर के अद्वितीय और श्रेष्ठ स्वभाव को समझ सकते हैं और उनके निर्देशों के अनुसार जीवन जी सकते हैं। परमेश्वर की सृष्टि हमें उनकी रचनात्मकता को दिखाती है, संरक्षण हमें उनकी सतर्कता और सुरक्षा का अनुभव कराता है, उद्धार हमें उनके प्रेम और अनुग्रह की गहराई को प्रकट करता है, न्याय हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, और प्रकाशन हमें उनके मार्गदर्शन के अनुसार जीने की दिशा दिखाता है। इन कार्यों के माध्यम से हम परमेश्वर की महानता और उनके प्रति अपनी समर्पण की भावना को सुदृढ़ कर सकते हैं।

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